सामाजिक मुद्दा

भारत में दहेज प्रथा

Mr Anown द्वारा लिखित

दुल्हन के माता-पिता या परिवार द्वारा विवाह की शर्त के रूप में दूल्हे और उसके माता-पिता को टिकाऊ सामान, रुपये या धन और संपत्ति देना भारत में दहेज प्रथा है। दहेज दूल्हे के पद और समाज में उसके माता-पिता की प्रतिष्ठा के अनुसार दिया जाता है। पूर्ण रूप से यह दूल्हे का सौदा है। क्योंकि वह खुद को धन से बेचकर दुल्हन लाता है। फिर अपनी कीमत गर्व से समाज में गाता है। शर्म महसूस करने के बजाय वे (दूल्हा, उसके माता-पिता और परिजन) गर्व महसूस करते हैं। यह सभी समस्याओं की जड़ है और यहीं से सामाजिक कुरीतियां जन्म लेती हैं। 

दहेज का इतिहास

भारत में दहेज का इतिहास अस्पष्ट है। कुछ का मानना है कि भारत में प्राचीन काल में दहेज प्रचलित था। वहीं कुछ इससे सहमत नहीं है। वे मानते हैं, इसकी जडें मध्ययुगीन काल से हैं। शादी के बाद दुल्हन की स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए उसके माता-पिता या परिवार द्वारा धन गहने या अन्य उपहार दिए जाते थे। 

वास्तव में, प्राचीन काल में उच्च जाति के हिंदुओं में इस प्रथा का प्रचलन था। मनु संहिता ने प्राचीन भारत में दहेज और वधू-धन को मंजूरी दी थी। उस समय दहेज प्रतिष्ठा स्वरूप था और ब्राह्मण जाति से जुड़ा था। यह विशेष रूप से उच्च जाति के व्यक्तियों के विवाह के लिए “प्रेम उपहार” के रूप में शुरू हुआ। हालाँकि, मध्ययुगीन काल के दौरान, दहेज की मांग विवाह के लिए अग्रदूत बन गई। 

इतिहास के कई पन्नों में यह अटल सत्य है। और पक्ष-विपक्ष होने के बावजूद इस पर सब राजी हैं कि औपनिवेशिक काल के दौरान, अंग्रेजों ने दहेज की प्रथा को अनिवार्य बनाया। दहेज प्रथा, शादी करने का एकमात्र कानूनी विकल्प बनने के पश्चात ही इसकी जडें पूरे भारत में फैल गईं। वर्तमान भारत में, अपनी बढ़ती अर्थव्यवस्था के साथ, यह प्रवृत्ति अब सभी सामाजिक-आर्थिक स्तरों के बीच दुल्हन की ऊंची कीमतों को प्रोत्साहित कर रही है। लेकिन दुल्हन की बढ़ती कीमत अपने साथ महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि लेकर आई है।

दहेज प्रथा का प्रभाव

सामाजिक कुरीतियों के पेड़ की जड़ दहेज है। एक से अनेक, अनेक से कई समाजिक कुरीतियों ने जन्म लिया है। किसी पेड़ की तरह, समय के साथ यह जड़ें और मजबूत होती जाएंगी। वर्तमान समय में, अलग-अलग धर्मों के लोग इससे अछूते नहीं है। वे यह दलील देते हैं, पुराने समय से यह हमारे धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है।

लिंग भेदभाव

दहेज प्रथा के कारण, आज भी कई जगहों पर महिलाओं को एक दायित्व या बोझ के रूप में देखा जाता है। ऐसा देखा गया है कि समानता, शिक्षा या अन्य सुविधाओं के विषयों में उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। उनके अधिकारों को दरकिनार कर, उन्हें अक्सर अधीनता का शिकार बनाया जाता है।

गर्भपात

भारत में लिंग-चयनात्मक गर्भपात एक चिंता का विषय रहा है। इसे कन्या भ्रूण हत्या के रूप में जाना जाता है और भारत में यह गैरकानूनी है। लोगों द्वारा ऐसा अनुचित कृत्य करने का मुख्य कारण दहेज ही है। लड़के के लिए सांस्कृतिक प्राथमिकताओं और दहेज प्रथा के कारण, कुछ परिवार चुनिंदा रूप से कन्या भ्रूण का गर्भपात कराने का विकल्प चुनते हैं। 

महिलाओं के खिलाफ अपराध

कुछ मामलों में, दहेज प्रथा महिलाओं के खिलाफ अपराध का कारण बनती है। जिसमें भावनात्मक शोषण और चोट से लेकर मृत्यु तक शामिल है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

दहेज प्रथा से आप क्या समझते हैं?

शादी में दुल्हन के माता पिता द्वारा महंगे उपहार दूल्हे के परिवार के लिए देना दहेज प्रथा है। 

दहेज का मुख्य कारण क्या है?

बेटी को उसके पति और उसके परिवार से वास्तविक दुर्व्यवहार की संभावना से सुरक्षा सुनिश्चित करना, दहेज का मुख्य कारण हैं।

दहेज प्रथा सबसे पहले किसने शुरू की थी?

बेबीलोन (वर्तमान इराक) में दहेज का जन्म हुआ था। इतिहास के सबसे पुराने अभिलेखों में, जैसे प्राचीन बेबीलोन की हम्मुराबी संहिता में, पहले से मौजूद प्रथा के रूप में दहेज को स्पष्ट वर्णित किया गया है। भारतीय उपमहाद्वीप में दहेज प्रथा का कोई पुरातात्विक प्रमाण नहीं हैं।

दहेज प्रथा कब से लागू हुआ?

भारत की संसद ने 20 मई 1961 को दहेज निरोधक अधिनियम बनाया। 1961 नामक दहेज देने या लेने पर रोक लगाने के लिए यह अधिनियम 1 जुलाई 1961 को लागू हुआ था।