करुणामय, दया-युक्त, उदार व्यक्ति होना, इंसानियत है। कबीर कहते हैं: “पोथी पढ़ि-पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।” बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़ कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुंच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं प्रेम को समझ लेने मात्र से ही आप विद्वान बन जाते हैं। प्रेम का अर्थ; करुणा, दया, उदारता और निस्वार्थता आदि गुणों को समझने से है।
इंसान में इंसानियत
बचपन से ही बच्चों को यह दुनिया एक दौड़ का हिस्सा बनाती है। दौड़ में पहला स्थान लाने का मतलब होता है, आपकी जीत हुई। पूरी दुनिया उसे सम्मानित करती है और तालियाँ बजाती है। कक्षा में दूसरे या तीसरे स्थान पर आये बच्चों को सम्मान तो दिया जाता है साथ ही उन्हें यह अहसास कराया जाता है कि वे प्रथम नहीं आयें हैं। आखिरी स्थान पर आये बच्चे को न केवल उसका समाज बल्कि परिवार भी तिरस्कारता है, मारता है और कहता है; तुम काबिल नहीं हो। वे यह नहीं जानते यह बच्चा अच्छा तोता नहीं है, इसने भी परीक्षा उत्तीर्ण की है।
“हर कोई प्रतिभावान है, लेकिन अगर आप किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की काबिलियत से आंकेंगे तो वह अपनी पूरी जिंदगी यही सोच कर गुजार देगी कि वह मूर्ख है।”
– अल्बर्ट आइंस्टीन
अपराजित धावक हार गया
एक ऐसी दौड़, जिसमें एक अंधा आदमी और बूढी महिला के साथ हमेशा प्रथम आने वाला एक धावक शामिल हैं। रेस शुरू होते ही धावक पूरी क्षमता से दौड़कर रेस जीत जाता है। स्टेडियम में हजारों लोगों के होने के बावजूद एक भी ताली नहीं बज रही थी। धावक बहुत शर्मिंदा होता है, वह पीछे जाता है, अंधे आदमी और बूढ़ी औरत का हाथ पकड़कर रेस पूरी करता है। सभी लोग खड़े होकर ताली बजाते हैं। रेस हारने पर भी वह खुश है और जीत गया है, यही जीवन है।
हमेशा प्रथम स्थान पर आने वाले ज्यादातर बच्चे जीवन में सफल नहीं होते। वे कभी समझते ही नहीं, जीवन में प्रथम स्थान पर आने वाले लोग नहीं, सबको साथ लेकर चलने वाले लोग सफल होते हैं। यही वजह है, वृद्धाश्रमों में ज्यादातर अमीरों के माँ-बाप ही मिलते हैं। एक पुरानी कहावत है: “कर भला तो हो भला।” वैसे, इसका उल्टा भी उतना ही प्रभावपूर्ण है। अब चुनाव आपका है।
उसे जिंदा जला दिया
पहली बार उसने चोरी की तो माँ ने उसे प्रोत्साहन दिया, यह सोचकर की वे गरीब हैं। थोडा बड़ा हुआ तो वह देर रात से घर आने लगा। गाँव वालों ने शिकायत की तो माँ ने अनसुना कर दिया। बड़ा होने पर वह एक डाकू और निहायती शराबी बना। एक दिन, किसी गाँव में लूटने के लिए वह घर से निकला। गाँव वालों ने उसे पकड़कर चौराहे पर लटका दिया। आग लगाकर उसे जिंदा जला दिया गया।
गरीब या अनाथ बच्चों की संख्या जेल में क्यों ज्यादा होती है? दिन में बाहर रहने पर, दोस्तों पर, देर रात को घर आने पर, उसके खाने-पीने आदि कामों को वे अनदेखा करते हैं। जब वह अपराध करता है, उसे बचाने के लिए उन पर रुपये नहीं होते। वे चाहकर भी उसकी मदद करने में असमर्थ हैं क्योंकि वे गरीब हैं। कभी-कभी उन्हें बाध्य किया जाता है या वे फंसाये जाते हैं। वजह है, गरीब माता-पिता ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं।
इंसान बनायें
वह भविष्य में कैसा बनेगा, यह बचपन की परवरिश से तय हो जाता है। उसके माँ-बाप कैसे हैं अथवा वे कैसा व्यवहार करते हैं, परिवार में किस तरह का माहौल रहता है, कुछ गलत कार्य करने पर उसे टोका जाता है या प्रोत्साहन मिलता है, आप उसे क्या कहने को कहते हैं और आप क्या करते हैं, वह मोबाइल, टीवी या अन्य तरह से क्या सामग्री ,देखता है, आप अपने माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, आप निर्णय किस प्रकार से लेते हैं, घर में काम करने वालों के साथ आपका व्यवहार कैसा है, आदि। वे सभी कार्य जिन्हें आप नजरअंदाज कर देते हों पर गौर करके बच्चे सीखते हैं।
इंसानियत और हैवानियत इंसानों में ही पायी जाती है। “मानव में सद्गुणों का होना ही इंसानियत है।” “हैवानियत दुर्गुणों का दूसरा नाम है।” विरले ही संसार में ऐसे माता-पिता होंगे जो अपने बेटे को चोर, गुंडा या बदमाश बनाना चाहते हों। मात्र उनकी गलतियों को अनदेखा करने से वे गलत राह पर अग्रसर हो जाते हैं। भविष्य में वह कैसा इंसान बनेगा इसका सीधा संबंध माँ-बाप की परवरिश से है। वे वास्तव में कभी इंसान बनते ही नहीं जिनके माता-पिता अपने बच्चों पर ध्यान नहीं देते हैं या अनदेखा करते हैं। चुनाव आपका है।