कुछ नियमों का पालन मनुष्य करते हैं जिन्हें रचा गया है। यह विश्व वैसा नही जैसा नजर आ रहा है। मनुष्य का इतिहास और वास्तविकता जानकर आप सत्य से अवगत होंगे।
इतिहास
इस पृथ्वी पर एकमात्र ऐसा प्राणी हुआ जिसमें कोई विशेषता नहीं थी। न ताकत, न चतुराई, न रफ्तार, न उनकी सूँघने की क्षमता सबसे ज्यादा थी और न किसी क्षेत्र में विशेष निपुणता थी। वे आसानी से शिकार बन जाते थे। फिर उन्होंने झुंड में रहकर शिकार करना शुरू किया। अन्य क्षेत्र में विशेषता न होने के कारण जीवित रहने के लिए इन्होंने अपने दिमाग का भी उपयोग करना शुरू किया। आज से लगभग 70,000 वर्ष पूर्व ज्ञानात्मक क्रान्ति हुई। जिसमें इनकी दिमागी क्षमताएं अप्रतिम रूप से बढ़ीं। मुख्यतः कल्पना शक्ति, बुद्धिमत्ता और स्मरण शक्ति बढ़ी। इसका उपयोग करके इन्होंने उन्नत भाषा बनाई। फिर समाज बना, नियम बनें, परिवार आदि बनें। इसी अनुक्रम में आखिरी बड़ी घटना आज से लगभग 10,000 वर्ष पूर्व घटी। कई चीजों में मानवों का खेती करना सीख पाना सबसे मुख्य है। इसे नवपाषाण क्रांति कहा गया।
विज्ञान क्या मानता है?
आज से लगभग 1.2 करोड वर्ष पूर्व जब प्राइमेट्स दो भागों में बंटे, एक तरफ महान वानर ‘Great Apes’ (गोरिल्ला, वनमानुष और चिंपैंजी) और दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलोपिथेकस (यह पहली सबसे बड़ी क्रान्ति हुई, यह चार पैरों से दो पैर पर आये, यहीं से दिमाग का आकार बढ़ने की शुरुआत हुई) इसका दौर लगभग 30 लाख वर्ष तक चला। इसके बाद निएंडरथल (यह पूरे इतिहास में सबसे बडे दिमाग वाला प्राणी हुआ) यह दोनों प्रजाति बाद में लुप्त हो गईं। इसी श्रेणी में आज से 25 लाख साल पहले होमोहेबिलस हुए और इनके पश्चात आज से मात्र 3 लाख वर्ष पूर्व होमो सेपियन्स हुए। जो आज पृथ्वी पर राज करते हैं।
पहली बार मनुष्य किसी एक स्थान पर रुक सकते थे। अब उन्हें जिन्दा रहने के लिए जगह बदलने की आवश्यकता नहीं थी। यहीं से शाकाहारवाद एक विचार बन कर उभरा। शुरुआत में भारत और यूनान, दर्शन और विज्ञान में सबसे ज्यादा सफल साबित हुए। क्योंकि यहाँ चिन्तन और विचार-विमर्श की परम्परा थी। यहाँ व्यक्तियों को गहरा सोचने की आजादी दी गई। भारत और यूनान का दर्शन 3500-4000 साल पहले ठीक रूप से विकसित हो चुका था। पश्चिम मे दर्शन 2800 साल पहले देखने को मिलता है। यहाँ पर सबसे पुराना दार्शनिक थेल्स, 620 ईसा पूर्व में हुआ।
वास्तविकता
यहाँ से मनुष्यों के मस्तिष्क की वृद्धि बहुत तेजी से हुई। आपके आस-पास उपलब्ध सभी भौतिक वस्तुयें इंसानी खोपडी का कमाल हैं। हमने समाज, परिवार, नियम, धन, लालच, अच्छा-बुरा, हार-जीत, जाति-धर्म, राज्य, देश, शक्ति, भगवान आदि सभी को अपने फायदे के लिए बनाया। बहुत चतुराई से संशोधित करके इनका उपयोग किया गया और किया जा रहा है।
“जिन चीजों पर लोग अपनी जान छिड़कते हैं, वास्तव में वह भ्रम है”
– Mr Anown
पैसे की शुरुआत और असलियत
वस्तु विनिमय प्रणाली से मुक्ति पाने के लिए यह आवश्यक हो चुका था। उस समय धन को एक औजार की तरह बनाया गया। जिससे वस्तु विनिमय के समय होने वाली लगभग सभी समस्यों से राहत मिली। धन को जब अवसर की तरह देखा गया तब मनुष्य ने धन को सबसे महत्वपूर्ण बनाया। धन से सभी भौतिक वस्तुयें, मवेशी और अब तो इंसान और उनके अंगों को खरीदा और बेचा जाता है। मनुष्य ने प्रकृति के संसाधनों का उपयोग करके नये-नये अविष्कार किए। टेक्नालॉजी से काम सुलभता और तेजी से होने लगे। फिर उद्योग लगाए गए जिससे मनुष्य का जीवन आसान हुआ, अन्य सभीका जीना दूभर हो गया। अब तक मनुष्य यह भूल चुका है; “धन जीवन नहीं है, जीवन जीने का साधन है।”
जीवन निर्वाह के लिए धन आवश्यक हो चुका है। धन की लालसा में मनुष्य पेड़ों को काटकर अधिग्रहण कर रहा है। कारखानों से आने वाला दूषित जल नदियों मे जा रहा है। दूसरों को दुख देकर वे आनन्द ले रहे हैं। मात्र मनुष्य के सुख और धन के लिए क्या ऐसा करना यथोचित है? सोचिये, मानवों के स्थान पर अन्य जीव, अन्य के स्थान पर मानव तो भी आपका जवाब वही होगा।
सत्य
एक तरफ दो केले और दूसरी ओर ₹500 रखें हों तो बन्दर केले ही उठायेगा। क्योंकि वह मानव निर्मित धन की शक्ति से अनभिज्ञ है। इसी तरह से मनुष्य स्वयं की शक्ति से अज्ञानता के कारण अनभिज्ञ है। Mr Anown के शब्दों में “धन सत्य नही, रचा गया भ्रम है, सत्य स्वयं आप हैं।” स्वयं को जानकर आप सत्य से अवगत होते हैं। सत्य से आप न केवल धन बल्कि अन्य कई चीजों को समझ सकते हैं। धन मात्र एक मानव निर्मित खेल है। ऐसे कई खेल बनाए गए हैं और खेले जा रहें हैं।
धन्यवाद 😊