जानना चाहिए

धन : सबसे बड़ा भ्रम

Mr Anown द्वारा लिखित

भारत में जिसकी पूजा होती है। जो सब कष्टों का निवारण है। वह दुनिया का सबसे महान आविष्कार नही, परन्तु उस पर दुनिया आश्रित है। खुद में मूल्य न होकर भी सबसे मूल्यवान है। व्यर्थ होकर भी समर्थ है। धन, एक ऐसा भ्रम, जो सत्य है। क्यों? ‘विश्वास’। 

वस्तु विनिमय प्रणाली

“दो लोगों के मध्य वस्तुओं और सेवाओं का विनिमय (की अदला बदली) वस्तु विनिमय प्रणाली है।” लोग एक वस्तु या सेवा के बदले किसी दूसरी वस्तु या सेवा को देते थे। किसी वस्तु पर निश्चित मूल्य निर्धारित न होने से सभी व्यापार ‘त्याग’ पर निर्भर थे। रात के खाने के लिए आपको सब्जियों की आवश्यकता है। और आपने पशुओं को पाला है। अपना पेट भरने के लिए आपको त्याग करना होगा।

सभी व्यापार किस त्याग पर निर्भर थे?

कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छित वस्तु पाने के लिए क्या त्याग करने को तैयार है।

वस्तु विनिमय प्रणाली के दोष

सोचिए अगर आपके पास एक हाथी है और आपको कपड़ों की आवश्यकता है। इस स्थिति में आप व्यापार की इस प्रणाली के साथ बड़ी समस्याएं देख सकते हैं।

  1. आवश्यकताओं के दोहरे संयोग का अभाव: इस प्रणाली में दोहरे संयोग का होना आवश्यक है। जब तक दोनों के संयोग नहीं बनेंगे तब तक व्यापार संभव नहीं है। आप त्याग करने को तैयार हैं। परन्तु सामने वाले व्यक्ति को हाथी की आवश्यकता नहीं। ऐसी स्थिति में व्यापार संभव कैसे हो सकता है?
  2. मूल्य के सामान्य माप का अभाव: कपड़ों और हाथी का मूल्य निर्धारित न होने पर ऐसी जटिल समस्या उत्पन्न हुई है। दोनों वस्तुओं के मूल्य निर्धारण के पश्चात व्यापार संभव है। और उस समय यह विचार नहीं आया था।

एक किसान की कल्पना कीजिए जिसने टमाटर उगाएं हैं। ऐसी स्थिति में उसे कई समस्यायों का सामना करना होगा।

  1. माल के भंडारण में कठिनाई: एक वस्तु से दूसरी वस्तु का विनिमय संभव है। टमाटर खराब होने वाली वस्तु हैं। इसे ज्यादा समय तक इकट्ठा करके रखने पर वह खराब हो जाएगा। ऐसे में वह किसान पूरी साल गुजारा कैसे करेगा?
  2. विलम्बित भुगतान करने में असमर्थता: इस प्रणाली में विलम्बित भुगतान भी संभव नहीं था। कोई भी व्यक्ति उस किसान के सभी टमाटर लेकर भविष्य में उसे उपयोगी वस्तुएं प्रदान नहीं कर सकता। क्योंकि माल भंडारण में समस्या है।

मुद्रा की शुरुआत

एक टेंट बनाने वाला टेंट बेचकर पूरे साल अपनी जीविका चला सकता है। किसान ऐसा करने में असमर्थ है। जब लोग समझने लगे अगर आप हर समय उपयोग में आने वाली वस्तुएं रखेंगे तो पूरे साल का गुजारा आसानी से किया जा सकता है। हमेशा उपयोग में आने वाली चीजों में मुख्यतः हथियार और नमक थे।

वस्तु मुद्रा

लोग थोक में उपलब्ध वस्तुएँ देकर अधिक नमक और हथियार लेने लगे। जिसे वे उन्हें भविष्य में देकर उपयोगी वस्तुएं ले लेते थे। यहीं से वस्तु मुद्रा चलन में आया। लोग नमक और हथियारों से विनिमय करने लगे। नमक और हथियारों से वस्तुयें खरीदी और बेची जाने लगीं। नमक और हथियारों से छोटे शंख या खोल और मनका आदि (जो आसानी से किसी समुद्री तट पर उपलब्ध होते हैं) से लेन-देन होने लगा। 

मानवों ने लेन-देन का बेहतर तरीका विकसित कर लिया था। किसी वस्तु या सेवा के बदले अन्य वस्तु या सेवा देने के बजाय छोटे पदार्थों से लेन देन करना एक शानदार विचार था। यह विचार इतना शानदार साबित हुआ कि पूरी दुनिया धीरे-धीरे वस्तु विनिमय प्रणाली से हटकर मुद्रा प्रणाली की ओर बढ़ गई। लेकिन विनिमय के इस माध्यम में अभी भी एक समस्या थी। 

विनिमय प्रणाली में समस्या

पैसे की कीमत कुछ भी होने के लिए, इसे दुर्लभ होना चाहिए। वस्तु जितनी अधिक उपलब्ध होती है उसका निहित मूल्य उतना ही कम होता है। यह मूल अर्थशास्त्र है। अगर हर कोई किसी चीज पर अपना हाथ रख सकता है तो उसका इतना मूल्य नहीं हो सकता। छोटे शंख या खोल, मनका आदि आसानी से किसी समुद्री तट पर उपलब्ध होने के कारण अच्छी मूल्य की माप नहीं थे। 

धातु के सिक्के बनाए गए

परिणामस्वरूप, वर्ष 770 ईसा पूर्व के आसपास चीन में पहला धातु का सिक्का बनाया गया। उन्होंने सिक्के को गोलाकार बनाया ताकि आपकी उंगलियों को चोट पहुंचाए बिना जेब में रखना और उन्हें बाहर निकालना आसान हो जाए। फिर उन्होंने कांसे के सिक्के ढाले। 

अंततः पैसे कुछ योग्य हो गये थे। आप समुद्री तट पर जाकर कांसे नहीं उठा सकते थे। यह दुर्लभ थे। इनका मूल्य था। इस समय अभी तक धन भ्रम नहीं था। सिक्के का मूल्य धातु के मूल्य पर निर्धारित होता था। अगर आपके पास 1 ग्राम सोने का सिक्का होता तो वह 1 ग्राम सोने के बराबर था। आप इसे आसानी से माप सकते थे। 

राजाओं ने धन की शक्ति को पहचाना 

राजाओं और शासकों ने जल्दी ही धन की शक्ति को भाँप लिया था। उन्होंने महसूस किया कि जितनी अधिक छोटी कीमती धातुएँ आपके पास होंगी उतनी ही अधिक शक्ति आप नियंत्रित कर सकते हैं। 600 ईसा पूर्व में, लिडिया के राजा एलियट्स ने पहली आधिकारिक धन टकसाल (रुपये बनाने का कारखाना) बनाई। उसने चांदी और सोने के मिश्रण का उपयोग करके एक सिक्का बनाया और सिक्के पर एक छवि अंकित की जो मुद्रांक के रूप में कार्य करती थी। 

धन का भ्रम पैदा हुआ

अब लोग धातु के टुकड़े पर बने चित्र को देखकर उसकी कीमत आंकते थे। परन्तु दुनिया के राजाओं को अधिक पैसा चाहिए था और कीमती धातुएं बहुत महंगी थे। अधिक धन का उत्पादन करने के लिए उन्होंने सिक्कों को पतला करना शुरू किया। फिर अधिक महंगी धातुओं को सस्ती धातुओं के साथ मिलाया। जल्द ही, संचलन में सभी सिक्के उनके चेहरे पर छवि के मुकाबले कम मूल्य के थे। अब तक धन का भ्रम पैदा हो गया था। सिक्के का मूल्य अब धातु के मूल्य से निर्धारित नहीं होता था। सिक्के का मूल्य अब बस वही था जो शासकों ने कहा था।

हालांकि, जब अंतरराष्ट्रीय व्यापार एक चीज़ बनी, तो लोगों को यह अनुभव हुआ कि धातु के सिक्के ले जाने के लिए बहुत भारी होते हैं। दुनिया भर के राजाओं ने लंबी दूरी के व्यापार के लिए IOU, प्रमाण पत्र जारी करना शुरू कर दिया। राजा द्वारा इन कागज के टुकड़ों पर मुहर लगाई जाने के कारण लोगों ने इसके मूल्य पर भरोसा किया। उन्हें विश्वास था कि वे सिक्कों के रूप में जो कुछ भी इनका (कागज के टुकडों का) मूल्य था का उपयोग उन्हें (सिक्कों को) वापस पाने के लिए कर सकते हैं। और उस समय के लिए यह सही भी था। जैसे-जैसे इन IOU प्रमाणपत्रों की बाढ़ आती गई, बाजार के लोगों को सिक्कों की जरूरत कम और कम होती गई।

अंत तक कागज़ का मूल्य वही था जो हम मानते थे कि यह मूल्य था। भले ही हम सोने और चांदी के भौतिक टुकड़ों के लिए इसका आदान-प्रदान (उस तरह से) न करें। प्राचीन राजाओं से लेकर आधुनिक समय की सरकारों तक और केंद्रीय बैंक का पैसा एक भ्रम बना हुआ है।

सारांश

वस्तु विनिमय प्रणाली से मुक्ति पाने के लिए यह आवश्यक हो चुका था। उस समय धन को एक औजार की तरह बनाया गया। जिससे वस्तु विनिमय के समय होने वाली लगभग सभी समस्यों से राहत मिली। धन को जब अवसर की तरह देखा गया तब मनुष्य ने धन को सबसे महत्वपूर्ण बनाया। यहीं से धन का भ्रम पैदा हुआ। जो अभी भी है।

उत्तर

भारत में जिसकी पूजा होती है; लक्ष्मी। जो सब कष्टों का निवारण है; क्लेशों का मुख्य कारण धन है। वह दुनिया का सबसे महान आविष्कार नही; अग्नि, पहिया और बिजली आदि को दुनिया के सबसे महानतम आविष्कारों में लिया जाता है। धन इसमे नहीं आता परन्तु उस पर दुनिया आश्रित है। खुद में धन का मूल्य नही; मोदी जी ने इसका प्रमाण दिया है। उपयोग में न आनेवाला धन व्यर्थ है। वास्तव में वह धन सब कुछ करने में समर्थ है।

धन्यवाद 😊