जानबूझकर अपने प्राण हर लेना, आत्महत्या है। यह सच है कि कोई भी व्यक्ति स्वयं ही खुद को चोट पहुंचाता है, इसीलिए यह आत्महत्या है। परन्तु दुर्भाग्य से इसमें परोक्ष रूप से कई कारक शामिल हैं। मानसिक विकार (इसके अन्तर्गत अवसाद, द्विध्रुवी विकार, सिज़ोफ्रेनिया, या चिंता विकार आते हैं), शारीरिक विकार (जैसे क्रोनिक थकान सिंड्रोम) मादक द्रव्यों का सेवन (जिसमें शराब और नशीली दवाओं का दुरुपयोग शामिल है) यह कारक आत्मघाती विचार और कार्यों का जोखिम बढ़ाते हैं।
ज्यादातर मामलों में सामाजिक अलगाव ( जैसे अकेलेपन की भावना, परिवार या दोस्तों से समर्थन की कमी), रिश्ते की समस्याएं (किसी प्रियजन को खोना, ब्रेकअप, तलाक, या रिश्तों में कलह), वित्तीय कठिनाइयाँ या आर्थिक तनाव (बेरोज़गारी, वित्तीय अस्थिरता, या अत्यधिक कर्ज़), दर्दनाक अनुभव (आघात, दुर्व्यवहार, हिंसा, नौकरी या किसी प्रियजन की हानि जैसी महत्वपूर्ण जीवन घटनाएं), सांस्कृतिक और सामाजिक कारक (मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को कलंकित करना, आत्महत्या से जुड़े सांस्कृतिक मानदंड या मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों तक पहुंच की कमी), तनाव और उत्पीड़न आदि कारक पाए गए हैं। आत्महत्या का प्रयास कर चुके लोगों में भविष्य में प्रयास करने का ज्यादा खतरा होता है।
आत्महत्या की रोकथाम के क्षेत्र में, आग्नेयास्त्रों, दवाओं और जहर जैसे घातक साधनों तक पहुंच को सीमित करना। आर्थिक स्थितियों में सुधार और सावधानीपूर्वक मीडिया रिपोर्टिंग एक महत्वपूर्ण निवारक के रूप में कार्य करती है, जिससे संकटग्रस्त व्यक्तियों को अपनी सोच पर पुनर्विचार करने के लिए बहुमूल्य समय मिलता है।
उसने आत्महत्या क्यों की?
यह करीब रात के एक बजे की बात है। अर्जुन के कमरे से कुछ गिरने की आवाज आई। जाकर देखा, स्टूल जमीन पर पड़ा था। और अर्जुन…, इतना कहते हुए उनका गला भर आया। वे बोले; मैंने लपककर उसे नीचे उतारा, उसे हिलाया, रेनू को आवाज दी और पानी लाने को कहा। धीमी आवाज में चिंतायुक्त होकर उन्होंने कहा; पर सब व्यर्थ था, देर हो चुकी थी शायद? अब तक वह जा चुका था।
उसके कमरे में जमीन पर पड़ा एक कागज का टुकड़ा मिला, जो उसने हमारे लिए छोड़ा था। उस पर लिखा था; मुझे कभी न समझने के लिए आपका धन्यवाद। उस कागज के टुकडे पर लिखी वो बात उसके दुख को बयाँ कर रही थी। पास में सुकून से सोया हुआ अर्जुन मानों कह रहा हो, कि इसके लिए केवल मैं नहीं, आप सभी जिम्मेदार हैं।
आत्महत्या पर महत्वपूर्ण आँकड़े
अर्जुन की तरह ही पूरे विश्व में 2022 में 800,000 मौंते हुईं। हर 39.42 सेकंड में एक व्यक्ति आत्महत्या से मर जाता है। यह वैश्विक स्तर पर मृत्यु का 10वां प्रमुख कारण है। पूरी दूनिया यह जानने पर तुली है कि विश्व में हो रही इन आत्महत्याओं के पीछे कारण क्या हैं? शोध और ढेर सारे डेटा विश्लेषण के बाद हम इस नतीजे पर पहुंचे कि 90% लोग मानसिक बीमारी से मरते हैं। पहले कोशिश कर चुके लोगों की दोबारा आत्महत्या का प्रयास करने की संभावना आम लोगों (जो आत्महत्या का प्रयास नहीं करते) से 20 गुना ज्यादा होती है। WHO (विश्व स्वास्थ्य संगठन) का यह भी अनुमान है कि प्रत्येक आत्महत्या से होने वाली मौत के लिए 25 आत्महत्या के प्रयास होते हैं। आत्महत्या की सबसे अधिक दर पूर्वी यूरोप में है, इसके बाद पश्चिमी यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया का स्थान है। आत्महत्या की दर सबसे कम उप-सहारा अफ़्रीका और लैटिन अमेरिका में है।
विभिन्न देशों में आत्महत्या का सबसे अधिक अपनाया जाने वाला तरीका साधनों की उपलब्धता से संबंधित होता है। इसके सामान्य तरीकों में फांसी, कीटनाशक विषाक्तता और आग्नेयास्त्रों का उपयोग शामिल है। 2021 में भारत में 164,033 आत्महत्याएं हुईं। 2020 में यह संख्या 1,59,000 पर थी। नवीनतम आंकड़ों की मानें तो भारत में आत्महत्या की दर प्रति 100,000 लोगों पर 12 है। NCRB की यह भी रिपोर्ट है कि भारत में महिलाओं की आत्महत्या दर प्रति 100,000 लोगों पर 10 है, जबकि पुरुषों की आत्महत्या दर प्रति 100,000 लोगों पर 14 है। भारत में मृत्यु का 15वां प्रमुख कारण आत्महत्या है। भारत में सबसे अधिक आत्महत्या दर महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश राज्यों में है। भारत में आत्महत्या के सबसे आम कारण मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं, पारिवारिक समस्याएं और वित्तीय समस्याएं हैं।
नोट: NCRB, World Health Organization, National Institute of Mental Health, Centers for Disease Control and Prevention, से यह आँकडे लिए गए हैं।
तथ्य और वास्तविकता
अर्जुन की तरह हर साल लाखों लोग मृत्युलोक को जाते हैं। हर साल आत्महत्या मृत्यु दर बढ़ रही है। यह सभी आंकडे तब तक व्यर्थ हैं, जब तक यह मृत्युदर कम नहीं होती। भारत में आत्महत्या करने वालों में 15-30 साल के लोग सबसे ज्यादा होते हैं। इनका कारण पारिवारिक और मानसिक समस्याएँ हैं। समाज, सभी परिवारों और माता-पिता को इस जटिल समस्या पर गौर करने की आवश्यकता है।
इस समस्या के अंत की शुरुआत बदलाव है। आत्महत्या से मरने वालों में मानसिक समस्याओं के लोग सबसे ज्यादा हैं। यह पूरे विश्व में देखने को मिलता है। इसीलिए हमें मानसिक समस्या (जैसे अवसाद, सिज़ोफ्रेनिया, या चिंता आदि) को एक बीमारी के रूप में देखने की आवश्यकता है। उन व्यक्तियों के इलाज की जरूरत है। जब पूरा समाज इसे समझेगा तभी यह मुमकिन है। न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व को इस बदलाव की आवश्यकता है। तथ्य, शोध, डेटा या आंकड़े कुछ भी कहें। परन्तु सत्य एक ही है: आत्महत्या।